Tuesday, 14 February 2017

बरगद की छाँव: बुंदेलखंड से एक प्रेम कहानी 

मार्च के महीने की कड़ी धूप थी पर हम दोनों की बातें मानो बरगद की छाँव जैसे लग रही थी। 

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मेरा नाम रूचि है। यह मार्च के महीने की बात है, सुबह के 11 बज रहे थे। हलकी हल्की धुप थी, मैं कॉलेज से वापस घर आ रही थी। जैसे ही मैं अपने मोहल्ले में पहुंची तो सुनसान रस्ते में हलकी धुप तेज़ हुई और तभी सामने से एक लड़का आते दिखाई दिया। हाथ में बैग लेकर, वह सांवले रंग का था। पहले मैंने उसको एक अजनबी के रूप में देखा, पर जैसे ही वह मेरे पास आया तो उसने मुझे रोका। मैं अचानक से चौंक गयी। मैंने मुड़कर देखा और मेरे मन में कई तरह के सवाल आ रहे थे। इससे पहले के मैं उससे कुछ पूछ पाती, उसने मुस्कुरा कर धीमी आवाज़ में पुछा, “तुम कहाँ गयी थी?” मैंने जवाब दिया कि कॉलेज से आई हूँ, जब मैंने उससे परिचय पूछा तो उसने ज़ोर से हँसते हुए कहा, “अच्छा, तो तुम मुझे नहीं जानती हो?” तो मैंने कहा नहीं। तब उसने मुझे बताया की वो सेम कॉलेज से है।  फिर मैंने दुबारा से नाम पता पूछा, तो उसने बताया कि 15 किलोमीटर दूर के गाउँ का रहना वाला है। फिर कहा कि उसे कुछ जल्दी काम और चला गया। इसके बाद मैंने उसके बारे में सोचा भी नहीं।
तीसरे दिन हम फिर कॉलेज गए, पेपर देने, उसका भी पेपर था। हम दोनों फिर वहां मिल गए और हँसते हुए पढाई के बारे में बात करते हुए चलने लगे। 2 किलोमीटर इस तरह हम दोनों पैदल चलते रहे और रोड तक आ गए।

मार्च के महीने की कड़ी धूप थी पर हम दोनों की बातें मानो बरगद की छाँव जैसे लग रही थी। रस्ते भर हम दोनों ने एक दूसरे के काम के बारे में पूछा। वह पहले से मेरे घर परिवार के बारे में जानता था। उसने मुझसे मेरा नंबर माँगा। मुझे उसकी मुस्करा कर बात करने और खुल कर बात करने की आदत बहुत पसंद आई। वह महिलओं और लड़कियों के बारे में सोचता था। उसकी सबसे अच्छी बात मुझे यही लगी की महिलाओं को आगे आते देखकर उसको ख़ुशी होती थी।
पता चला कि वह दिल्ली में रह कर कंपनी में काम करता था, और उसने कहा कि अगर  मुझे कभी किसी चीज़ की जानकारी की ज़रूरत पड़ी तो वो मेरा सहयोग कर सकता है। मैंने उसको अपना नंबर दे दिया, और और हम दोनों अपने-अपने घर चले गए। पर मैंने उसका नंबर सेव नहीं किया।
दिल्ली जाकर उसने एक दिन कॉल किया। जब पहली बार उसका फ़ोन आया और उसने अपना परिचय दिया तो अच्छा लगा, मुझे ख़ुशी हुई। हम दोनों 10 मिनट तक तो काम के बारे में बात करते रहे। उसके बाद जब भी उसका फ़ोन आता तो हम आधा आधा घंटे तक बात करते। उसने अपने दोस्तों और अपने ऑफिस के काम के बारे में बताया। संडे के दिन क्योंकि उसका ऑफिस बंद रहता था और मैं भी फ्री होती थी, तो हम एक घंटे तक बात करते। हम दोनों खुल कर बात करते रहे। बातों-बातों में ही हमारा मनोरजन भी हो जाता है। अब तो बारिश का मौसम आ गया है, और हम इसी महीने में मिलने वाले है। उसके घर में कोई कार्यक्रम है तो मुझे बुलाया है। अभी हमने सोचा नहीं है की जायेंगे या नहीं, पर मैं कोशिश करुँगी।
अब आगे की कहानी सुनने के लिए तो इंतज़ार तो करना पड़ेगा, मुझे भी। 


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